भारत विश्व में सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। वर्ष 2010-11 में भार का कुल दूध उत्पादन 12.18 करोड़ टन रहा।
योजना आयोग के अनुमान एवं सकल घरेलू उत्पाद की लगातार उच्च वृद्धि के कारण हुए सुधार के पश्चात् यह संभावना है कि दूध की मांग 2016-17 तक (12वीं पंचवर्षीय योजना का अंतिम वर्ष) लगभग 15.5 करोड़ टन तथा 2021-22 तक लगभग 20 करोड़ टन होगी। दूध की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अगले 15 वर्षों में वार्षिक वृद्धि को 4 प्रतिशत से अधिक रखना आवश्यक है।
अत: प्रजनन तथा पोषण पर केन्द्रित कार्यक्रम द्वारा वर्तमान पशु झुंड की उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए एक वैज्ञानिक तरीके से योजनाबद्ध बहुराज्य पहल आरंभ करना अत्याश्यक है। राष्ट्रीय डेयरी योजना की परिकल्पना पन्द्रह वर्षों की अवधि को ध्यान में रखते हुए की गई है क्योंकि एक अधिक उत्पादक पशु को उत्पन्न करने में तीन से पांच वर्ष की अवधि अपेक्षित होती है अत: दूध उत्पादन वृद्धि के लिए प्रणाली को विकसित तथा विस्तार करने में इतना समय लगता है।
राष्ट्रीय डेयरी योजना का प्रथम चरण, जो मुख्यत: विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा, छ: वर्षों कि अवधि में लागू किया जाएगा, इसके निम्नलिखित उद्देश्य होंगे
(i) दुधारू पशुओं की उत्पादकता में वृद्धि में सहायता करना तथा इसके द्वारा दूध की तेजी से बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए दूध उत्पादन में वृद्धि करना तथा
(ii) ग्रामीण दूध उत्पादकों को संगठित दूध – संसाधन क्षेत्र की बृहत पहुँच उपलब्ध करने में सहायता करना।
राष्ट्रीय डेयरी योजना का कार्यान्वयन= योजना के प्रथम चरण में भू - आयामी पहलों की श्रृंखलाएं 2012-2013 से शुरू होकर छ: वर्षो की अवधि तक कार्यान्वित की जानी हैं।
वैज्ञानिक प्रजनन और पोषण के माध्यम से उत्पदकता में बढ़ोत्तरी
प्रजनन- कृत्रिम गर्भाधान में, उच्च अनुवांशिक योग्यता के साँड़ों से प्राप्त वीर्य के प्रयोग से ही किसी भी बड़ी आबादी में अनुवांशिक प्रगति लायी जा सकती है। दुधारू पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान को 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 35 प्रतिशत करने की आवश्यकता है।
रोग मुक्त एवं उच्च अनुवांशिक योग्यता के गाय, भैंस और साँड़ों का अंतराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित संतान परिक्षण और वंशावली चयन द्वारा उत्पदान एवं जर्सी होल्सटिन फ्रीजियन साँड़ /भ्रूण अथवा वीर्य का आयात
अपेक्षित उत्पादन
संतान परिक्षण (पीटी) और वंशावली चयन (पी एस) के माध्यम से विभिन्न नस्लों के 2500 उच्च अनुवांशिक योग्यता के साँड़ों का उत्पादन और 400 विदेशी साँड़ों/भ्रूणों का आयात।
संतान परिक्षण (पी टी) के माध्यम से साँड़ उत्पादन करने के लिए चयनित नस्लें :
भैंस : मुर्रा और मेहसाना
गाय : एच एफ, एचएफ संकर, जर्सी संकर और सुनंदिनी
वंशावली चयन (पी एस) के माध्यम से चयनित नस्लें :
भैंस : जाफ्फ्राबादी, बन्नी, पढ़रपुरी और नीली – रावी,
गाय : राठी, साहिवाल, गिर कंकरोज, थारपारकर और हरियाणा
ए और बी श्रेणी के वीर्य उत्पादन केन्द्रों को मजबूत बनाना और उच्च गुणवत्ता तथा रोग मुक्त वीर्य का उत्पादन करना
अपेक्षित उत्पादन
योजना के अंतिम वर्ष में लगभग 10 करोड़ उच्च गुणवत्ता के रोग मुक्त वीर्य खुराकों का सालाना उत्पादन
मानक संचालन प्रक्रिया का अनुकरण करते हुए एक पेशेवर सेवा प्रदाता के माध्यम से कृत्रिम गर्भाधान वितरण सेवाओं के लिए एक प्रयोगिक मॉडल की स्थापना कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं में जबावदेही और विश्वसनीय आंकड़ों के संग्रह एवं ट्रेकिंग के द्वारा ही अनुवांशिक प्रगति के लाभ की मात्रा को मापा जा सकता है।
अपेक्षित परिणाम
लगभग 3000 प्रशिक्षित मोबाईल कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन यह सुनिश्चित करेंगे कि मानक संचालन प्रक्रिया का पालन, आंकड़ों का संग्रह और ट्रैकिंग करते हुए पेशेवर सेवाएँ किसान के दरवाजे पर वितरित हो रही है।
प्रायोगिक मॉडल एक आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर मॉडल का मार्ग दिखलाएगा और कृत्रिम गर्भधान वितरण के लिए एक पूरी तरह से नया दृष्टिकोण पेश करेगा।
राष्ट्रीय डेयरी योजना के अंत में प्रति वर्ष, चालीस लाख कृत्रिम गर्भधान किसान के दरवाजे पर किए जाएंगे।
कृत्रिम गर्भाधान की संख्या, प्रति गर्भ धारण 4 से घटा कर 2 से भी कम की जाएगी ।
यह सब तब संभव हो सकता है यदि जैव सुरक्षा के लिए पर्याप्त उपाय हों जो साँड़ उत्पादन क्षेत्रों और वीर्य उत्पादन केन्द्रों में पशुओं के रोगों को निरोध और नियंत्रित करें। राज्य सरकारों को साँड़ उत्पादन क्षेत्रों और वीर्य उत्पादन केन्द्रों को पशुओं में संक्रामक और स्पर्शजन्य रोगों की रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम 2009 के तहत रोग नियंत्रण क्षेत्र घोषित करने, नियमित टीकाकरण और पश्चात निगरानी, कान – टैगिंग के माध्यम से टिका लगाए हुए पशुओं की पहचान और रोग निदान प्रयोगशालाओं को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि कृत्रिम गर्भाधान के लिए रोग मुक्त उच्च अनुवांशिक योग्यता वीर्य ही प्रयोग किया जाता है।
गाँव आधारित अधिप्राप्ति प्रणाली को सुदृढ़ करना
दूध उत्पादन कार्य में लगभग 7 करोड़ ग्रामीण परिवार संलग्न हैं, जिसमें अधिकतर छोटे, सीमांत एवं भूमिहीन किसान हैं। डेरी सहकारिता छोटे पशुपालक, विशेषकर महिलाओं के समावेश और आजीविका को सुनिश्चित करती है।
यह वंछित है कि सहकारी क्षेत्र बेचने योग्य अतिरिक्त दूध से संगठित क्षेत्र द्वारा हैंडल किए जाने वाले वर्तमान 50% प्रतिशत के हिस्से को बनाए रखे।
दूध को उचित तथा पारदर्शी तरीके से इकट्ठा करने और समय पर भुगतान सुनिश्चित करने की गाँव आधारित दूध संकलन प्रणाली स्थापित करना तथा उसका विस्तार करना
वर्तमान डेयरी सहकारिता को सुदृढ़ करना और उत्पादक कंपनियों अथवा नई पीढ़ी की सहकारिताओं को ग्रामीण स्तर पर दूध मापन, परीक्षण, संकलन और दूध प्रशीतन से संबंधित बुनियादी ढाँचा स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन देना
संस्थागत ढाँचा निर्माण तथा प्रशिक्षण के लिए सहायता देना
अपेक्षित परिणाम
23,800 अतिरिक्त गांवों को विकसित सम्मिलित करना
प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण
इस परियोजना के सफल कार्यान्वयन के लिए कुशल तथा प्रशिक्षित मानव संसाधन अनिवार्य तथा महत्वपूर्ण हैं। फिल्ड में काम करने वाले कार्मिकों का प्रशिक्षण एवं विकास करना। इस परियोजना के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण क्षेत्र होगा। क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण तथा प्रौद्योगिकी के प्रोत्साहन के लिए शिक्षा अभियान और गाँव स्तर पर उन्नत प्रक्रियाओं को अपनाना भी एक मुख्य पहल होगी। यह अनुमान है कि एनडीपी के अंतर्गत लगभग सभी स्तर के 60,000 कार्मिकों को प्रशिक्षण तथा पुन: अभिविन्यास की आवश्यकता होगी।
परियोजना प्रबंधन तथा गहन अध्ययन
राष्ट्रीय डेयरी परियोजना के अंतर्गत की जाने वाली पहल, विभिन्न भौगिलिक स्थानों पर फैली हुई हैं। इसलिए विभिन्न गतिविधियों के संचालन के लिए आईसीटी (सूचना तथा नचार प्रौद्योगिकी) पर आधारित प्रणालियों को एकीकृत करना आवश्यक है।
विभिन्न गतिविधियों के एकीकरण के साथ - साथ विभिन्न स्तरों पर निगरानी तथा रिपोर्टिंग के लिए आईसीटी पर आधारित सूचना प्रणाली लागू करना, आवश्यक विश्लेषण करना तथा परियोजना कार्यान्वयन में आवश्यक परिवर्तन में सहायता देना
आधारभूत, मध्य – कलिका एवं परियोजना समापन सर्वक्षण एवं विशिष्ट सर्वक्षण/अध्ययन करना
गहन अध्ययन करना तथा अध्ययन अनुभवों का दस्तावेज बनाना
अपेक्षित परिणाम
परियोजना की गतिविधियों की प्रभावशाली निगरानी तथा समन्यव
वार्षिक योजनाओं को समय पर तैयार करना तथा लागू करना
अंतिम कार्यान्वयन एजेंसियां (ईआईए)
एनडीडीबी एनडीपी को ईआईए के द्वारा लागू करेगी। ईआईए का चयन विशिष्ट पात्रता मानदंड के आधार पर किया जाएगा, जिसमें संस्थागत/शासन तथा वित्तीय पहलु सम्मिलित होंगे। इसके अतिरिक्त, एनडीपी के प्रत्येक घटक के लिए विस्तृत मानदंड हैं जिसमें तकनीकी पहलु शामिल हैं।
ईआईए में शामिल होंगे राज्य सहकारी डेरी महासंघ, जिला सहकारी दूध उत्पादक संघ, सहकारी उद्यम जैसे कि उत्पादक कंपनियां, राज्य पशुधन विकास बोर्ड, केन्द्रीय पशु (गाय – बैल) प्रजनन फार्म (सीसीबीएफ), केन्द्रीय हिमित वीर्य उत्पादन तथा प्रशिक्षण संस्थान (सीएमएसपी एंड टीआई), चारा उत्पादन तथा प्रदर्शन के क्षेत्रीय स्टेशन (आरएसएफपी एंड डी) पंजीकृत समितियाँ/न्यास (गैर रकारी संस्थाएं), धारा 25 के अंतर्गत गठित कंपनियां, सांविधिक निकायों की सहायक कंपनियां आईसीएआर के संस्थान तथा पशु चिकित्सा/अनूसंधान संस्थान/ विश्वविद्यालय जो राष्ट्रीय विषय संचालन समिति (एनएससी) द्वारा प्रत्येक गतिविधि के लिए निश्चित पात्रता मानदंड को पूरा करते हैं।
कार्यान्वयन व्यवस्थाएं
कार्यान्वयन व्यवस्था इस प्रकार है
राष्ट्रीय विषय संचालन समिति के प्रमुख, सचिव डीएडीएफ, भारत सरकार होंगे, यह समिति नीतिगत तथा कार्यनीति संबंधी सहायता प्रदान करेगी।
परियोजना विषय संचालन समिति के प्रमुख, मिशन निदेशक (एनडीपी) होंगे, यह समिति योजना को अनुमोदन देगी तथा प्रगति का अनुश्रवण करेगी।
परियोजना प्रबंधन इकाई, एसडीडीबी में स्थित होगी जिसमें बहु विषयक दल होगा जो परियोजना के कार्यान्वयन को प्रबंधित करेगा।
दीर्घकालिक लाभ
समग्र लाभों के रूप में, एनडीपी से वैज्ञानिक पद्धति तथा व्यवस्थित प्रक्रियाएं स्थापित होंगी, जिससे यह आशा की जाती है कि देश में दुध उत्पादन करने वाले पशुओं की आनुवांशिक अनुकूल और निरंतर सुधार के पथ पर आगे बढ़ेगी। इससे देश के दुर्लभ – प्राकृतिक संसाधनों का अधिक बुद्धिमाता से उपयोग होगा, मीथेन उत्सर्जन में कमी होगी विपणन किए जाने वाले दूध की गुणवत्ता में सुधार होगा, विनियामक तथा नीतिगत उपायों को सुदृढ़ करने में सहायता मिलेगी जिससे देश में, डेरी उद्योग वातावरण तैयार होगा, तथा लघु धारक दूध उत्पादकों की आजीविका को सुधारने में योपोषण
सन्तुलित आहार खिलाने पर दुधारू पशु अपनी अनुवांशिक क्षमता के अनुरूप दूध का उत्पादन करते हैं । इस पद्धति द्वरा खिलाने से न केवल उनके स्वास्थ्य और उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, बल्कि यह दुग्ध उत्पादन की लागत की भी काफी कम करता है, क्योंकि दूध उत्पादन में आने वाली लागत में आहार का अनुमानत: 70 प्रतिशत का योगदान है, जिससे किसान की आय में बढ़ोतरी होती है। आहार सन्तुलित के लिए राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड द्वारा एक सरल एवं आसानी से उपयोगी होने वाला कम्प्यूटरीकृत सोफ्टवेयर विकसित किया गया है।
आहार संतुलन का एक अतिरिक्त लैब मीथेन उत्सर्जन स्तर में कमी करना है, जोकि ग्रीन हाउस गैसों में एक महत्वपूर्ण कारक है।
दूध उत्पादकों को दुधारू पशुओं के लिए राशन संतुलन एवं पोषक तत्वों के बारे में 40,000 प्रशिक्षित स्थानीय जानकार व्यक्ति परामर्श सेवाओं द्वारा उनके घर – घर जाकर उन्हें शिक्षित करेंगे
किसानों को उन्नत किस्मों के उच्च गुणवत्ता चारा बीज उपलब्ध करा कर चारे की पैदावार बढायेंगे एवं साइलेज बनाने और चारा संवर्धन का प्रदर्शन किया जाएगा
अपेक्षित परिणाम
40,000 प्रशिक्षित स्थानीय जानकार व्यक्ति आहार संतुलन के बारे में 40,000 गांवों के लगभग 27 लाख दुधारू पशुओं पर परामर्श प्रदान करेंगे।
7,500 टन प्रमाणित चारा बीज का उत्पादनगदान होगा जो भारतीय दूध उत्पादन प्रणाली की आधारशिला है
परियोजना की प्रगति तथा परिणामों की नियमित समीक्षा तथा प्रतिवेदन करना
परियोजना क्षेत्र
एनडीपी चौदह मुख्य दूध उत्पादन करने वाले राज्यों अर्थात आन्ध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िसा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल पर केन्द्रित रहेगा।
पात्रता मानदंड
राज्यों को इस परियोजना के सफल कार्यान्वयन के लिए वातावरण बनाने हेतु आवश्यक विनियामक/नीति सहायता के लिए वचनबद्ध होना होगा जैसे कि
योग्य प्रजनन नीति को अपनाना
कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम लघु पशु चिकित्सा सेवा के अंतर्गत अधिसूचित न किया गया हो
एआई डिलीवरी के मूल्य को धीरे – धीरे बढ़ाना ताकि इसमें पूरी लागत आ जाए
राज्य में एआई डिलीवरी के लिए वीर्य केवल ए तथा बी श्रेणी के वीर्य केन्द्रों से प्राप्त से प्राप्त करना
सभी प्रजनन गतिविधियों के इए डीएडीएफ द्वारा जारी सामान्य प्रोटोकोल तथा एसओपी को अपनाना तथा
पशु अधिनियम (2009) में संक्रमण रोगों के निवारण तथा नियंत्रण के अधीन राज्य नियमों को अधीसूचित करना।
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