सैटेलाइट को हिंदी में उपग्रह कहा जाता है। जैसे पृृथ्वी ग्रह का उपग्रह चांद है। एक उपग्रह ग्रह के चक्कर काटता है यानी अंतरिक्ष की बात करें तो छोटा object बड़े के चक्कर काटता है। जिस तरह चांद पृृथ्वी के चक्कर काटता है। इसी तरह वैज्ञानिकों द्वारा बनाए गए यह सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा में स्थापित होकर वहां से सिग्नल भेजते हैं, जिन्हें स्कैन कर वैज्ञानिक इमेजिंग, नेविगेशन और कम्युनिकेशन में इस्तेमाल करते हैं। मसलन इनसे मिलने वाले सिग्नल के जरिये ही टीवी देखना, मौसम का हाल बताना, मोबाइल में जीपीएस नेविगेशन, फोन पर बातचीत आदि संभव हुआ है। कार्य और इस्तेमाल के हिसाब से इनके आकार अलग-अलग होते हैं। मसलन यह टीवी के आकार के बराबर भी हो सकते हैं और ट्र्क के बराबर भी। लगे हाथ आपको यह भी बता दें कि अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत अब चौथी महाशक्ति कहलाता है। हाल ही में भारत ने कई मिसाइलें अंतरिक्ष में प्रक्षेपित की हैं। वह अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को लगातार मजबूत कर रहा है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि चीन के साथ उसका तनाव चल रहा है और अब तो नेपाल जैसे छोटे देश भी चीन की शह पर भारत को आंखें दिखाने की गुस्ताखी कर रहा है।
सैटेलाइट कैसे काम करते हैं? How do Satellites Work?
सैटेलाइट एक निर्धारित तरीके से काम करते हैं। सैटेलाइट के दोनों ओर सोलर पैनल लगे हुए होते हैं। इनको इसी से ऊर्जा अर्थात बिजली मिलती है। इनके बीच ट्रांसमीटर और रिसीवर लगे होते हैं। यही ट्रांसमीटर और रिसीवर सिग्नल को प्राप्त करने और भेजने का काम करते हैं। इसके अलावा इनमें कुछ कंट्रोल मोटर भी लगी होती हैं। जब भी सैटेलाइट की पोजीशन या एंगल को बदलना होता है तो यह कार्य कंट्रोल मोटर के जरिये किया जाता है।सैटेलाइट को किस कार्य के लिए तैयार किया है, इसकी जानकारी आपको Satellite में देखकर मिल जाती है। उदाहरण के लिए यदि सैटेलाइट को पृृथ्वी की इमेज लेने के लिए बनाया गया है तो इस सैटेलाइट में कैमरे भी लगाए गए होंगे। इसी तरह स्कैनिंग के कार्य के लिए सैटेलाइट तैयार किया गया होगा तो उस पर स्कैनर लगाए गए होंगे। सैटेलाइट से सर्वाधिक कम्युनिकेशन से जुड़े कार्यों को अंजाम दिया जाता है। इसे बेहतर करने के लिए टेलीकॉम कंपनियों के बीच होड़ भी लगती है ताकि उनकी कंपनी का नेटवर्क सबसे बेहतर हो और वह इसके आधार पर अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को अपने पाले में खींचने में कामयाब हो सकें
सैटेलाइट कितने प्रकार के होते हैं? Types of Satellite in hindi –
सैटेलाइट कितने प्रकार के होते हैं। यह तीन प्रकार के होते हैं। लो अर्थ आरबिट सैटेलाइट, मीडियम अर्थ आरबिट सैटेलाइट और हाई अर्थ आरबिट सैटेलाइट। कुछ सैटेलाइट इमेज और स्कैनिंग के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। इन्हें लो अर्थ आरबिट सैटेलाइट भी कहते हैं। इसकी वजह यह है कि ये पृृथ्वी के काफी नजदीक होते हैं। इनकी उंचाई 160 किलोमीटर से लेकर 1600 किलोमीटर तक होती है।
ये दिन में कई बार पृृथ्वी के चक्कर पूरे कर लेते हैं। मीडियम अर्थ आरबिट सैटेलाइट का उपयोग नेविगेशन के लिए किया जाता है। यह 12 घंटे में पृृथ्वी का एक चक्कर पूरा कर लेते हैं। इनकी उंचाई 10 हजार किलोमीटर से 20 हजार किलोमीटर तक होती है।
कम्युनिकेशन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सैटेलाइट हाई अर्थ आरबिट सैटेलाइट कहलाते हैं। यह धरती से करीब 36 हजार किलोमीटर की दूरी पर होते हैं। यह पृृथ्वी की गति के साथ ही उसका चक्कर लगाते हैं। आपको बता दें कि 1975 से लेकर अब तक भारत करीब सौ से अधिक सैटेलाइट प्रक्षेपित यानों के जरिये अंतरिक्ष में स्थापित कर चुका है।
आपको यह भी बता दें कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, जिसे इंगलिश में Indian space research organization यानी ISRO पुकारा जाता है, वह भारतीय Satellite का डिजाइन और निर्माण करता है।
दुश्मन पर निगरानी के काम भी आता है सैटेलाइट सैटेलाइट दुश्मन पर निगरानी के काम भी आता है। जैसे सीमा पर क्या हो रहा है, इसकी इमेज के जरिये पता लगाया जा सकता है। आपको बता दें कि इस वक्त भारत के पास कुल सात Military सैटेलाइट हैं। दोस्तों, आपको जानकारी दे दें कि बहुत से देश दुश्मन देश का सैटेलाइट नष्ट करने के लिए एंटी सैटेलाइट का सहारा लेते हैं। यह अंतरिक्ष में दुश्मन के खिलाफ एक बड़ा हथियार होते हैं। जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि यह दुश्मन की सैटेलाइट को नष्ट करने के काम आते हैं। आपको यह जानकर अवश्य अच्छा लगेगा कि हमारे देश भारत ने भी एंटी सैटेलाइट यानी ए सेट बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है। इतना ही नहीं दोस्तों, उन्होंने अंतरिक्ष में एक Satellite को तीन मिनट में ध्वस्त करके इसका धांसू ट्रायल भी किया। वैज्ञानिकों की यह सफलता हर देशवासी के लिए गर्व का विषय है। भारत अपने अंतरिक्ष मिशन पर करोड़ों रूपये खर्च करता है। इसकी उपलब्धियों के जरिये ही देश सुरक्षित और दुश्मन देशों पर प्रभाव डालने में कामयाब रहता है।
हवा में कैसे टिके रहते हैं सैटेलाइट? How do satellites stay in the air?
आपके मन में यह सवाल अवश्य आया होगा कि यदि सैटेलाइट ट्र्क के आकार के भी हैं तो वह हवा में टिके कैसे रहते हैं। जमीन पर क्यों नहीं गिरते तो आपको यह बता दें कि इसका एक सामान्य सा नियम है। नियम यह कि यदि किसी object को अंतरिक्ष में रहना है तो उसे अपनी एक गति से किसी बड़े object का चक्कर लगाते रहना होगा। इनकी स्पीड पृृथ्वी के ग्रेविटेशनल फोर्स यानी गुरूत्वाकर्षण बल को अपने उपर हावी नहीं होने देती लिहाजा, Satellite आसानी से हवा में टिके रहते हैं। बात गुरूत्वाकर्षण बल की निकली है तो आपको बता दें कि ग्रेविटी के सिद्धांतों का प्रतिपादन करने वाले न्यूटन को जिस पेड़ से सेब गिरने पर ग्रेविटी से जुड़ा ज्ञान प्राप्त हुआ था, वह पेड़ आज भी खड़ा है और इस वक्त उसकी उम्र करीब साढ़े तीन सौ साल हो चुकी है।
NASA भी देता है बच्चों को अंतरिक्ष और सैटेलाइट संबंधित जानकारी –
नासा यानी National aeronautics and space administration (NASA) भी स्कूली बच्चों के लिए एक कार्यक्रम चलाता है। इसमें विभिन्न स्कूलों के बच्चों को नासा का दौरा कराया जाता है। यहां वह अंतरिक्ष, पृथ्वी, चंद्रमा और तमाम सेटेलाइट के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। दोस्तों, आपको बता दें कि नासा की इस पहल का मकसद बच्चों में वैज्ञानिक अभिरुचि को विकसित करना है और अंतरिक्ष के प्रति उनमें दिलचस्पी को बढ़ाना है।
देश के विभिन्न स्कूलों के बच्चे नासा जाकर अंतरिक्ष के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। नासा भ्रमण कार्यक्रम को विभिन्न स्कूल अपने ब्रोशर में प्राथमिकता से प्रकाशित करते हैं। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए छात्रों को अलग से एक निश्चित धनराशि चुकानी पड़ती है।
मुसीबत के वक्त काम आते हैं सैटेलाइट फोन –
सैटेलाइट फोन लैंडलाइन या टावर की जगह उपग्रह से सिग्नल प्राप्त करता है। इनके जरिये किसी भी स्थान से फोन किया जा सकता है। चाहे वह रेगिस्तान हो या पहाड़। समुद्र हो या फिर कोई जंगल। आपने देखा होगा कि जब भी ट्रैकर जंगल या पहाड़ पर निकलते हैं तो उनके पास सैटेलाइट फोन होते हैं, वह इसीलिए ताकि वह आपस में बेहतरीन तरीके से कम्युनिकेशन कर सकें और किसी भी मुसीबत में फंसें तो सूचना दे सकें।
इसके अलावा पुलिस, फौज, आपदा रिस्पांस बलों के पास भी यह Satellite फोन होते हैं। विशेष रूप से आपदा के वक्त बल के जवानों का एक दूसरे संपर्क मुश्किल हो जाता है। बल के जवान कभी बाढ़ तो कभी अग्निकांड के वक्त आम जान माल की सुरक्षा में तैनात रहते हैं। उनके बीच संवाद का Satellite एक अहम जरिया होता है। इसी के जरिये वह प्रभावित क्षेत्रों के हालात का हाल अपने उच्चाधिकारियों तक पहुंचाते हैं।
इस सूचना के आधार पर ही मदद और बचाव की व्यवस्था संभव हो पाती है। इस संबंध में उत्तराखंड में सन् 2013 में केदारनाथ में आई आपदा का जिक्र करना प्रासंगिक होगा। यहां सैटेलाइट फोन के जरिये ही जवानों ने जंगलों के भीतर और पहाड़ों पर लापता लोगों की खोज कर उनका बचाव सुनिश्चित किया।
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